यह बच्चा कैसा बच्चा है
यह बच्चा काला काला—सा
यह काला—सा मटियाला—सा
यह बच्चा भूखा भूखा—सा
यह बच्चा सूखा सूखा—सा
यह बच्चा किसका बच्चा है
यह बच्चा कैसा बच्चा है
जो रेत पर तन्हा बैठा—है
ना इसके पेट में रोटी है
ना इसके तन पर कपड़ा है
ना इसके सर पर टोपी है
ना इसके पैर में जूता है
ना इसके पास खिलौनों में
कोई भालू है कोई घोड़ा है
ना इसका जी बहलाने को
कोई लोरी है, कोई झूला है
ना इसकी जेब में धेला है
ना इसके हाथ में पैसा है
ना इसके अम्मी—अब्बू हैं
ना इसके आपा—खाला हैं
यह सारे जग में तन्हा है
यह बच्चा कैसा बच्चा है
यह तन्हा बच्चा बेचारा
यह बच्चा जो यहाँ बैठा है
इस बच्चे की कहीं भूख मिटे
(क्या मुश्किल है, हो सकता है)
इस बच्चे को कहीं दूध मिले
(हाँ दूध यहाँ बहुतेरा है)
इस बच्चे का कोई तन ढाँके
(क्या कपड़ों का याँ तोड़ा है?)
इस बच्चे को कोई गोद में ले
(इंसान जो अब तक जिंदा है)
फिर देखिए कैसा बच्चा है
यह कितना प्यारा बच्चा है!
यह बच्चा कैसे बैठा है
यह बच्चा कब से बैठा है
यह बच्चा क्या कुछ पूछता है
यह बच्चा क्या कुछ कहता है
यह दुनिया कैसी दुनिया है
यह दुनिया किसकी दुनिया है
हम जिस आदम के बेटे हैं
यह उस आदम का बेटा है
यह आदम एक ही आदम है
वह गोरा है या काला है
यह धरती एक ही धरती है
यह दुनिया एक ही दुनिया है
सब इक दाता के बंदे हैं
सब बंदों का इक दाता है
कुछ पूरब—पश्चिम फर्क नहीं
इस धरती पर हक सबका है
इस जग में सबकुछ रब का है
जो रब का है, वो सबका है
सब अपने हैं कोई गैर नहीं
हर चीज में सबका साझा है
वह दाना है या मेवा है
जो कपड़ा है, जो कंबल है
जो चाँदी है, जो सोना है
वह सारा है इस बच्चे का
जो तेरा है, जो मेरा है
यह बच्चा किसका बच्चा है?
यह बच्चा सबका बच्चा है
(यह नज़्म एक सूखाग्रस्त, भूखे, मरियल बच्चे ने कवि से लिखवाई है)
उर्दू के मशहूर कवि और व्यंगकार इब्ने इंशा, देश विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए। उन्हें हिन्दी का अच्छा ज्ञान था जिसका उनकी कविताओं में भरपूर प्रयोग हुआ है। वे तरक्की पसन्द रचनाकार थे। उनकी बहुत सी नज़्में और ग़ज़लें हिन्दुस्तान में बहुत लोकप्रिय हैं। आज के बर्बर पूँजीवाद समय में यह रचना शिद्दत के साथ फिर से याद आती है।